इम्मोटाइल सिलिया सिंड्रोम

इम्मोटाइल सिलिया सिंड्रोम

करीब आठ महीने का बच्चा अस्पताल में चैथी बार भरती हुआ। हर बार वह गंभीर न्यूमोनिया एवं दायें फेफड़े में अपर लोब कोलैप्स के साथ भरती होता था। दो बार उसके दोनो कानों में ओटाइटिस मीडिया नामक इन्फेक्शन भी हुआ था।उसके अभिभावक बच्चों में सर्दी-खांसी को लेकर भी अत्यधिक परेशान रहते थे। सर्दी खांसी लगातार बनी रहती थी। इस कारण से वजन भी नहीं बढ़ रहा था और आठ किलो के वजाय वह सिर्फ पांच किलो का था। इलाज भी सामान्य से लंबा चलता था। कई महीनों से छाती में व्हीजिंग के कारण उसे नेबुलाइजेशन की भी जरूरत पड़ रही थी। सारी जांच भी नाॅर्मल आ रही थी। बार-बार ओटाइटिस मीडीया, व्हीज चेस्ट, लंबी सर्दी-खासी, न्यूमोनिया की कि वजह से इम्यूनो डेफिशिएंसी की भी सारी जांच करवायी गयी। उसकी छाती की भी जांच करवायी गयी किंतु कोई परेशानी नहीं मिली। कई अन्य जांच भी करायी गयी सब की रिपोर्ट नाॅर्मल आयी। अंत में नाक के बाल की इलेक्टाॅªन माइक्रोस्कोप स्टडी की गयी। जिससे इम्मोटाइल सिलिया सिंड्रोम को डायग्नोज किया गया। इस बीमारी में स्वास नली की सिलिया ( सूक्ष्म बाल) उपर एवं बाहर की तरफ एक साथ गतिमान उपरी दिशा में नहीं होते है, जिसके फलस्वरूपस्वास नली के डनबने बाहर नहीं निकल पाता है और काफी गंदगी स्वास नली में ही फंस जाती है। अतः बार-बार उपरोक्त समस्या होती है। यह आनुवंशिक रोग है और कोई अचूक इलाज नहीं है। इस कारण लक्षणें के आधार पर ही बच्चे का इलाज किया गया।

क्या है पारा स्पाइनल एब्सेस

क्या है पारा स्पाइनल एब्सेस

कुछ वर्ष पहले 10 साल के लड़के को तेज बुखार और दौरे पड़ने की समस्या के साथ भरतीकिया गया। वह छह महीने से बीमार था। बार बार तेज बुखार और दौरे के कारण उसे एक अस्पताल में तीन बार भरती कराया गया था। अब तक रोग के कारण का पता नहीं चल पाया था। ब्रेन को दो बार सीटी स्कैन एवं कई अन्य जांच नाॅर्मल पाये गये। सीबीसी में डब्ल्यूबीसी कई बार बढ़ा हुआ मिला। पर इन्फेक्शन के लोकेशन का पता नहीं चला। एंटीबायोटिक्स से बुखार उतर जा रहा था, मगर कुछ दिन बाद बुखार पुनः वापस आ जाता था। उसे जब मेरे पास लाया गया , तो पहले उसके केस स्टडी की गयी। उसके बाद मैंने रीढ़ में मौजूद तरल पदार्थ की जांच करवाने के लिए कहा। सेंपल लेते समय बच्चा काफि हिल डुल रहा था। इसी कारण गलती से सुई रीढ़ के बगल में लग गई। जिससे पस जैसा पीला पदार्थ बाहर आया। इससे और सीटी स्कैन की रिपोर्ट के आधार पर पारा स्पाइनल एब्सेस कंफर्म हो गया। इसे ड्रेन करके पस को बाहर निकाल दिया गया। एंटीबायोटिक के लंबे कोर्स के बाद बच्चा ठीक हो गया। बार-बार बुखार होने का कारण घाव या फोड़ा आदि भी होता है। इस केस में भी ऐसा ही हुआ था। अतः यदि बंुखार के उपचार के बाद भी यह ठीक न हो , तो तुरंत डाॅक्टर से मिलना चाहिए। समय पर इलाज करवाना जरूरी है।

क्या है प्रेडर विल्ली सिंड्रोम

क्या है प्रेडर विल्ली सिंड्रोम

छह महीने की बच्ची लगभग चार महीने से बीमार थी। उसे बार-बार न्यूमोनिया से ग्रसित होकर अस्पताल में भरती होती थी और इलाज जरूरत से ज्यादा लंबा करना पड़ता था। गौर किया गया कि उसकी उंगलियां काफी छोटी थी। वजन मात्र चार किलो, आॅखे बादामी, लंबे सिल्की बाल, मुंह छोटा और नीचे झुका हुआ, लंबाई 54 सेमी, हाइपोटोनिक हाथ व पैर, दूध पीने में बार-बार सरकना और ठीक से पी नहीं पाना आदि समस्याएं देखने को मिलीं। इस बीमारी का अनुमान हो जाने के बाद जीन म्युटेशन स्टडी करवायी गयी, जिसका रिजल्ट असामान्य था। अतः प्रडेर विलि सिंड्रोम कंफर्म हो गया।एक दो वर्षों के बाद अत्यधिक आहार लेने की वजह से ऐसे बच्चे काफी मोटे हो जाते है। घे्रलिन हाॅर्मोन की अधिकता से ब्रेन आहार से संतुष्ट नहीं हो पाता है। इसके फलस्वरूप मरीज आहार लेता जाता है। स्लीप एप्निया, नींद में सांसें रूकना, टाइप 2 डांयबिटीज आदि की वजह से हड्ढी कमजोर होने, जोड़ों में दिक्कत, अचानक पेट फूलना और मोटापे से संबंधित जटिलता होती है। कम लंबाई के लिए ग्रोथ हाॅर्मोन, विटामिनों की खुराक सपोर्टिव केयर के अलावा अभी तक कोई अचूक इलाज नहीं है। दिमाग के कमजोर होने की वजह से ऐसे बच्चे ठीक से पढ़ नहीं पाते है।

कच्चे दूध से हो सकता है ब्रूसेलोसिस

कच्चे दूध से हो सकता है ब्रूसेलोसिस

कुछ महीने पहले छह साल के बच्चे को हल्के बुखार, जोड़ों में दर्द, हल्की जाॅन्डिस, बढ़े हुए लिवर एवं स्पलीन, वजन गिरना एवं भूख नहीं लगने की शिकायत लेकर क्लिनिक पर लाया गया। शारीरिक  जांच के बाद खून की जांच करवायी गयी। जिसमें स्वेत रक्त कोशिकाएं हल्की बढ़ी हुई एवं लिंफोसाइट तकरीबन 47 प्रतिशत पाया गया। इएसआर 38 आया। हीमोग्लोबिन थोड़ा कम 9.2 एवं अन्य खून एवं पेशाब की जांच नाॅर्मल आयी। टायफायड की जांच भी नाॅर्मल आयी। गरदन की कुछ गिल्टियां भी बढ़ी हुई थी। इसलिए टीबी और टायफाइड की जांच करवायी गयी। लेकिन टीबी एवं टायफाइड नहीं निकला। इलाज तो कराना ही था। अतः ओरल एंटीबायोटिक 10 दिनों के लिए दिया। 10 दिनों में बुखार एवं बढ़ा हुआ लिवर एवं स्पलीन बिलकुल कम नहीं हुआ। जांच में बिलरूबिन एवं एसजीपीटी क्रमशः 2.4 एवं 108 आयी। अतः हेपेटाइटिस ए और बी की भी जांच की गयी। जो नेगेटिव आयी कालाजार एवं मलेरिया भी नेगेटिव आया। अब कुछ असामान्य रोगों की आशंका हुई। जोड़ों में दर्द एवं बढ़ी स्पलीन के कारण रूमेटाॅयड आर्थराइटिस की जांच की गयी जो नेगेटिव आयी। अंत में ब्रूसेलोसिस एंटीजेन टेस्ट किया गया, क्योंकि कच्चा दुध पीने की शिकायत मुझे मिलि। यह पाॅजीटिव आया। यह रोग बैक्टीरिया के कारण होता है। अतः कफर्म होने के बाद उपयुक्त दवाएं तीन महीने के लिए दी गयीं और बच्चा बिल्कुल ठीक हो गया।

क्या है कावासाकी रोग

क्या है कावासाकी रोग

कुछ वर्ष पहले छह माह के बच्चे को इलाज के लिए लाया गया। बच्चे को कुछ दिनों से बुखार आ रहा था। दोनों आंखों लाल थी व होठ सूखे हुए थे। जीभ भी बिल्कुल लाल थी। जांच के बाद भी बुखार के कारणों का पता नहीं चल पा रहा था। लक्षणेंा के आधार पर कावासाकी रोग का अनुमान लगाया गया। प्लेटलेट काउंट 7 लाख प्रति एमएल पाया गया। इन लक्षणों के आधार पर दवाइयां शुरू की गयी। कुछ दिनों में बुखार उतर गया। इको कराने के बाद हॅार्ट  एन्यूरिज्म बढ़ा पाया गया। एन्यूरिज्म के फटने से मृत्यु भी हो सकती है। सर्जरी से उसे हटा दिया गया। कुछ समय बाद बच्चा स्वस्थ हो गया। उसका जुड़वा भाई दूसरे शहर में था। उसे भी यही समस्या हुई। मगर आश्चर्यजनक बात यह थी किवह खुद ही कुछ दिनों में स्वस्थ हो गया। कावासाकी रोग के कारणों का अभी तक पता नहीं चल पाया है। ऐसा माना जाता है कि बैक्टीरिया, वायरल आदि के प्रति इम्यून सिस्टम के रिएक्शन से होता है। इस रोग को जल्द से जल्द पहचानना जाना चाहियें ताकि उपयुक्त दवा देकर हार्ट एन्यूरिज्म के बनने से पहले रोका जाना चाहिए ताकि मरीज की मृत्यु नहीं हो । अतः ऐसे लक्षणों को देख कर तुरंत डाॅक्टर से संपर्क करना चाहिए।

वूल्मेन डिजीज का इलाज

वूल्मेन डिजीज का इलाज

करीब दो साल पहले एक व्यक्ति चार महीने के बच्चे को न्यूमोनिया का इलाज कराने के लिए आया। मैने उस बच्चे का इलाज किया। पर इलाज में थेाड़ा लम्बा समय लगा। एक महीने के बाद वह व्यक्ति फिर से बच्चे का इलाज कराने आया । इस बार न्यूमोनिया और व्हीजी चेस्ट की समस्या थी।दोनों बार सामान्य से लंबा इलाज चला। इससे मुझे यह आभास हो रहा था कि कोंई गंभीर समस्या थी। इसी कारण ऐसा हो रहा था। पहले दिन ही बच्चे का लिवर और स्पलीन बढ़ा हुआ मिला। बच्चे के पिता ने बताया कि दो-तीन साल पहले उसके दो और बच्चों की मृत्यु हो गयी थी और कारण का पता नहीं चला था। मैंने बच्चे की जांच करायी। खून का सेंपल लिया गया। खून के सूख कर जमने के बाद सफेद वसा काफी मात्रा में दिखी। अतः ट्राइग्लिसराइड और कोलेस्ट्राॅल की भी जांच करायी गयी। ट्राइग्लिसराइड 755 एंव कोलेस्ट्राॅल 430 आया। यह नाॅर्मल से काफी ज्यादा था। इन जांचों से वूल्मेन डिजीज कंफर्म हो गया। यह अनुवंशिक रोग है और इसका कोई इलाज नहीं है। तकरीबन एक साल तक मैं बच्चे का इलाज करता रहा। उसके बाद वह अपने राज्य चला गया। बच्चे का पिता इस बात से संतुष्ट था कि पहले उसके बच्चे की मृत्यू का पता चल गया। हांलाकि इस समय रोग पर काफी रिसर्च की जा रही है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही रोग का इलाज संभव हो पायेगा।

पारफायरिया का हुआ उपचार

पारफायरिया का हुआ उपचार

कुछ वर्षेंा पहले आठ साल के एक लड़के को इलाज के लिए लाया गया। उसे कई दिनों से पेट में दर्द, शरीर पर दाने, सिर में दर्द और और पेट दर्द के समय बेहोशी की समस्या हो रही थी।वह अब तक दासयों बार हाॅस्पिटल में भरती हो चुका था। धुप में रहने पर पुरे शरीर पर दाने निकल जा रहे थे। दानों के निकलने और दबने से शरीर भी काला पड़ता जा रहा था। पेट में दर्द के कारण वह पागलों जैसा हरकत करने लगता था। उसे उल्टियां भी काफी होती थी। किसी दवाई का असर भी नहीं हो रहा था। ब्लड प्रेशर भी बढ़ा हुआ था। अल्ट्रासाउंड एवं सीटी स्कैन में भी पेट में किसी समस्या का पता नहीं चला। एक दिन उसके पेशाव का रंग काला हुआ। अब रोग का कुछ अलग अनुमान लगने लगा था। पारफायरिया या अल्कैप्टो न्युरिया में पेशाब का रंग काला हो जाता है। अल्कैप्टोन्यूरिया में जोड़ों में दर्द भी होता है, जो बच्चे को नहीं था। इसलिए यह रोग नहीं था। अतः पारफायरिया कंफर्म करने के लिए पेशाब की जांच करायी गयी, जांच से यह कंफर्म हो गया। बच्चे का आॅपरेशन किया गया और उसे बचा लिया गया। धूप, कुछ दवाइयों व कुछ अन्य कारणों से इस रोग का अटैक होता है। जिन दवाइयों से अटैक हो, उसका सेवन नहीं करना चाहिए। चूंकि यह जेनेटिक डिजिज है, अतः उपरोक्त परहेज एवं तरीकों से ही निरंतर अटैक से बचा जा सकता है। उसकी कोई दवा या इलाज अभी तक नहीं है।

बिना बुखार के टायफॅायड की इन्फेक्शन

बिना बुखार के टायफॅायड की इन्फेक्शन 


लगभग 25 दिनों पहले पांच साल की बच्ची को तीन-चार दिनों से बार-बार उल्टी की शिकायत लेकर आ रही थी। हाल में किसी बुखार की शिकायत नहीं थी। शारीरिक जांच बिलकुल सामान्य थी। उल्टी रोकनक के लिए इन्जेक्शन एवं धर के आठ-आठ धंटे पर सिरप देने की सलाह दी। पेशाब की जांच भी करवायी गयी। किंतु वह रिपोर्ट भी नाॅर्मल आयी। यह जांच इसलिए करवायी गयी क्योंकि अकसर पेशाव में इन्फेक्शन के कारण भी उल्टियां होती है। अब कभि- कभार हल्के काले रंग की दस्त भी दिन में दो-तीन बार हो जा रही थी। एक सिरप देना भी शुरू किया गया। किंतु अगले दो-तीन दिन तक भी उल्टियों का सिलसिला जारी रहा। पांच दिन तक उल्टियां नहीं रूकने पर फिर से जांच की, तो हल्का बुखार भी पाया गया।मां ने कभि-कभार शरीर गरम होने के बारे में बताया। अब स्प्लीन बढ़ी हुई मिलि और मेेनिनजाइटिस की कोई लक्षण नही मिलि। किंतु स्थिति में सुधार नहीं हाने के कारण मैने टायफाइड की जांच के अलावा किडनी और लिवर की जांच करवायी। सारी जांच नाॅर्मल आयी लेकिन विडाल टेस्ट पाॅजिटिव आयी। यह आश्र्यजनक बात थी कि बुखार के बिना भी टायफॅाइड हुआ था। अब टायफाइड के लिए एंटीबायोटिक का इन्जेक्शन शुरू किया। पहले इन्जेक्शन के ही बाद उलटी बंद हो गयी। दवाइयों का पूरा कोर्स करने के बाद बच्ची पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गयी।

क्या है बीयोंड सीलियक डिजीज

क्या है बीयोंड सीलियक डिजीज


कुछ महीनेां पहले एक व्यक्ति मेरे पास अपने बच्चे की इलाज के लिए आये। उसके 12 वर्ष के लड़के को यही रोग था। बच्चे को पेट में दर्द होता था। उन्होंने पहले जांच करायी थी। जिसमें सीलियक डिजीज की पुष्टि हुई थी। स्ट्रिक्ट ग्लूटेन फ्री डायन की पुष्टि हुई थी। स्ट्रिक्ट ग्लूटेन फ्री डायट लेने के बावजूद भी उसमें कोई सुधार नहीं आ रहा था। कई बार पेट दर्द के कारण वह स्कुल भी नहीं जा पा रहा था। यदि चला भी जाता था, तो उसे स्कुल से लाना पड़ जाता था ।मैनें बच्चे की जांच करायी। जांच में स्ट्रिक्ट ग्लूटेन फ्री डायट लेने की पुष्टि हुई। पहले मैंने खुद ग्लूटेन फ्री व्यंजनों की लिस्ट बना कर दी और उसे फाॅलो करने के लिए कहा। 15 दिन फाॅलो करने के बाद भी पेट दर्द में कोई सुधार नहीं हुआ। इस समस्या का एक कारण पैन्क्रिएटिक इन्सफिशिएंसी भी हो सकता है। इसकी जांच उपलब्ध नहीं हो पाने के कारण इससे संबंधित दवाई दिन में तिन दिन खाने के लिए दी गयी। उसके बाद मरीज में आश्चर्यजनक सुधार हुआ। अब बच्चे को कभी- कभार ही पेट में हल्का दर्द होता था। मगर अब इसके चलते स्कुल छोड़ने की नौबत नहीं आती थी।सीलियक डिजीज के इलाज के बाद भी बच्चे का पेट दर्द इसलिए ठीक नहीं हो रहा था क्योंकि पैन्क्रिएटिक इन्सफिशिएंसी के लिए इलाज नहीं हो रहा था। इलाज होते ही समस्या अपने आप दूर हो गयी। इस अवस्था को बीयोंड सीलियक डिजीज के नाम से भी जाना जाता है।



वी. डब्लू.डी. रोग का हुआ इलाज

वी. डब्लू.डी. रोग का हुआ इलाज

4-5 साल पहले एक महिला इलाज कराने के लिए आयी। महिला की उम्र 38 वर्ष थी। उसने नाक की सर्जरी करके उसे हटाने का आग्रह किया। उसका कहना था कि पिछले साल बच्चेदानी निकलवाने के बाद से हर सात से दस दिन में उसके नाक से काफी रक्त स्राव आ रहा था। इसके कारण उसे खून भी चढ़वाना पड़ रहा था। उसने बताया कि 15 वर्ष की उम्र से ही महीने में एक बार उसे काफी रक्तस्राव होता था। इस कारण साल में दो-तीन बार खून चढ़वाना पड़ता था। वह कई विशेषज्ञों से दिखा चुकी थी। मगर उसकी समस्या का कोई सामाधान नहीं हुआ था। पिछले साल परिवार पूरे होने के बाद विशेषज्ञों से सलाह लेकर उसने बच्चेदानी को सर्जरी द्वारा हटवा दिया। उसी के बाद से नाक से रक्तस्राव शुरू हो गया। इसी कारण वह नाक की सर्जरी करवाने आयी थी। उसे समझाया गया कि नाक की सर्जरी करके उसे हटवाना समाधान नहीं है क्योकि हो सकता है किसी दूसरे अंग से ब्लीडिंग शुरू हो जाये। उसके खून की जांच की गयी। उसके बाद एक और जांच की गयी, जिसमें करीब 20 हजार का खर्च आता है। कुछ दिन के बाद जब रिपोर्ट आयी, तो वी.डब्लू.डी. कंफर्म हो गया। उसे डीडीेएवीपी की नेजल पफ दिया गया। ब्लीडिंग के समय इसे लेने से ब्लीडिंग बंद हो जाती है। अब उसे ब्लीडिंग नहीं होती है और वह स्वस्थ है। अतः यदि इस तरह की समस्या होतो अच्छे तरीके से जांच करानी जरूरी है ताकि गलत इलाज से बचा जा सके।

आनुवंशिक रोग है एचएलएच


      आनुवंशिक रोग है एचएलएच

लगभग तीन साल पहले डेढ़ महीने के एक बच्चे को तेज बुखार हुआ जो एक सप्ताह के बाद भी नहीं उतरा था। मैंने उसकी जांच की, तो लिवर और स्पलीन दोनों बढ़े हुए मिले। जांच में मलेरिया, टाइफाइड, ब्लड कल्चर इत्यादि नाॅर्मल मिला। पर बच्चे का वजन लगातार कम हो रहा था। बुखार 104 डिग्री से अधिक था। सात दिनों तक एंटीबायोटिक देने से भी कोई सुधार नहीं हो रहा था। उसके बाद मैंनें कुछ विशेष जांच करायी, जिसमें फाइब्रोनोजिन काफी कम आया, फेरीटिन 16 हजार था जो नाॅर्मल 500 से काफि ज्यादा था। ट्राइग्लिसराइड का लेवल 282 था। अतः इन पांच क्रायटेरिया से एचएलएच सत्यापित हो गया। यह कैंसर से भी खतरनाक रोग है। इसका इलाज बोन मेरो ट्रांसप्लांट और कीमोथेरेपी से होता है। वायरल इन्फेक्शन, कुछ रोगों और इम्युनोडेफिशियेंसी आदि समस्याओं के कारण अपनी शरीर ही रक्त कोशिकाओं को नष्ट करने लगता है। इस बच्चे में सीएमवी की इन्फेक्शन भी  मिला था, जो इम्युनोडेफिशिएंसी स्टेट में संक्रमित होता है। पिता से पूछने पर पता चला कि इस बच्चे के दो भाइयों की मृत्यु भी 2004 और 2005 में क्रमशः छह महीने और एक साल की उम्र में हो गयी थी। उस समय दिल्ली एम्स में भी इसके कारणें का पता नहीं चला था। असल में यह एक आनुवंशिक रोग है, जिसके कारण बच्चों की मृत्यु हो गयी। यह समस्या अब पुरी दुनिया में फैल रही है। अतः इसके बारे में जानकारी रखनी जरूरी, ताकि समय पर इलाज से रोगी को कुछ लाभ मिल सके।

PFAPA है इन्फेक्शनल डिजीज

PFAPA है इन्फेक्शनल डिजीज



एक आठ वर्ष का लड़का बहुत तेज बुखार गरदन में गिल्टी मुंह और जीभ में सफेद एवं लाल अल्सरेटेड टॅान्सिल एवं सफेद ध्ब्बेां के साथ भरती हुआ। अभिभावक ने बताया कि 4-5 सालों से तकरीबन हर महीने बच्चे की यही स्थिति होती है। बुखार 104 डिग्री फाॅरेनहाइट तक चला जाता है। कुछ एंटीबायोटिक दिया जाता है और 4-5 दिनों में वह बिलकुल नाॅर्मल हो जाता है और अब उसकी टाॅन्सिल निकालने की तैयारी चल रही थी। जांच में WBC बढ़ा हुआ था। 3-4 दिनों में डेक्सेाना इंजेक्शन व ब्रूफेन देने से वह बिल्कुल स्वस्थ हो गया। अभिभावकों की तसल्ली के लिए मैंने lga,lgA,lgm & lgE करवाया जो बिल्कुल नाॅर्मल आया। अन्य जांच भी नाॅर्मल आये। throat swab में staph aureus bacteria का ग्रोथ देखा गया, पर इसे डिस्काॅर्ड कर दिया गया क्योंकि इस बैक्टिरिया से टाॅन्सिल की इंफेक्शन नहीं होती है। Epstein-Barr virus के इंफेक्शन की डायग्नोसिस के लिए lgm, lga & VCA टेस्ट कराये जो निगेटिव आये। अतः Periodic Fever, Adenitis, Pharyngitis, Aphthous Ulcer (PFAPA) Syndrome कीडायग्नोसिस बनाई और बिना एंटीबायोटिक के ही बच्चें को ठिक कर दिया। और टॅान्सिल का आॅपेशन नहीं कराने की सलाह दी। आगे Colchicine  नामक दवा शुरू करायी। पिछले कई महीने से वह बिलकुल ठीक है और अभि तक बुखार एवं टाॅन्सिल की इन्फेक्शन नहीं हुआ है। यह autoimmune diease  है और 8-10 वर्ष उम्र के बाद यह अपने आप ठीक हो जाता है। तब तक Colchicine  से इस तरह की दिक्कतों को कम किया जा सकता है।

क्या है फेनकोनी एनिमिया

क्या है फेनकोनी एनिमिया

कुछ वर्षों पहले दिल्ली में मेरे अस्पताल में डेढ़ वर्ष के लड़के को इलाज के लिए लाया गया। उस लड़के में बहुत सारी शारीरिक विकृति एवं सीवियर एनिमिया था। बच्चे कि लंबाई भी काफी कम थी। आंखें छोटी थी और ऊपर सूजन भी था। उसका सिर भी छोटा था। तलवा हाई आच्र्ड था। दोनो हाथों के अंगूठे छोटा और मोटे थे। शरीर पर टेढ़े-मेढ़े दाग एवं खून के धब्बे भी थे। लिवर एवं स्पलीन भी बढ़ा हुआ था। वह बार बार बीमार पड़ रहा था। न्यूमोनिया, दस्त, बुखार आदि रोग हमेशा परेशान करते रहते थे। जांच में हीमोग्लोबिन 4.8 था। व्हाइट ब्लड सेल्स भी काफी कम था। एक्स-रे में दोनों हाथेंा में रेडियस हडडी हाइपोप्लास्टिक थी। एसजीपीटी भी बढ़ा हुआ था। खुन की जांच में बोन मैरो हाइपोप्लेशिया मिला। अब बोन मैरो में क्रोमोजोमल ब्रेकेज स्टडी की गयी। अब फेनोकोनी एनिकमिया कंफर्म हो गया। इलाज के लिए ब्लड ट्रांसफयूजन, प्लेटलेट ट्रांसफयूजन के अलावा एंड्रोजेन, टेस्टोस्टेरॅान एवं अन्य दवांए दी गयीं। कुछ महिनों के बाद बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए भेज दिया गया। अब स्टेम सेल में थेरेपी से पूर्णतः इलाज भी संभव है। यह आनुवंशिक रोग है और लड़के-लड़कियाॅं दोनों में होता है। इस रोग के होने के बाद कैंसर की आशंका भी बढ़ जाती है। समय- समय पर इसकी जांच भी करनी पड़ती है। शारीरिक विकृतियों के लिए सर्जरी की भी जरूरत पड़ सकती है।

What is Gaucher Cell disease?

  क्या है गाउचर सेल डिजीज




कुछ साल पहले एक वर्ष के बच्चे को इलाज के लिए लाया गया। उसके पैरों में दर्द रहता था । उसे किसी भी प्रकार का चोट या फ्रैक्चर नहीं हुई थी। जांच करने पर लिवर एवं स्पलीन का आकार बढ़ा हुआ मिला। खून की भी कमी थी। दर्द की सूईयों का भी कोई असर नहीं  होता था। प्लेलेट भी कम था। बच्चे को नाक से खून बहने की भी समस्या थी। त्वचा पर जगह-जगह खून के धब्बे भी निकलते थे। हाइट भी कम थी। कई रोगों जैसे- ब्लड कैंसर, बोन मैरोे हाइपोप्लेशिया, ब्लीडिंग डिसआॅर्डर आदि के होने का अनुमान हो रहा था। एक्स-रे में हडिडयां कमजोर मिलि। बोन मैरोे में ब्लड कैंसर व हाइपोप्लेशिया की कोई लक्षण नहीं मिली।स्पेशल गाचर सेल्स काफी संख्या में मिलें। ये मुड़े हुए कागज के टुकडे़ां जैसा थे। इन लक्षणें से गाउचर डिजीज की पुष्टि हो गयी। इसकि पुष्टि स्वेत रक्त कोशिका में विशेष एजाइम की कमी पहचान कर हो गई। इससे यह रोग कम्फर्म हो गया। इस रोग के उपचार के लिए एंजाइम की ही इन्जेक्सन शरीर में दिया जाता है। यह इन्जेक्शन जीवन पर्यंत मरीज को दिया जाता है। इस इलाज से यह बच्चा दो वषों में तकरीबन सामान्य जीवन जीने लगा।